प्रकृति जो हर साँस देती है, जीने के लिए जल देती है।
प्रकृति ही तो सबकी माँ है, जो अपना सर्वस्व लुटा देती है।
मेरे प्यारे पाठकों प्रकृति के बारे में तो सभी जानते हैं प्रकृति हमारी जननी है। फल, फूल और अन्न सभी कुछ तो प्रकृति से मिलता है। जीते जी भी हमें प्रकृति की आवश्यकता है और मरने के बाद भी प्रकृति ही तो है जो अपने आगोश में ले लेती है वरना तो मरने के बाद कोई भी मृत् व्यक्ति को अपने साथ नही रखना चाहता।
हमारी भी भी जिम्मेदारी बनती है। हम भी अपनी मां प्रकृति का ध्यान रखें। पेड़, पौधों को और पशु, पक्षियों को बचाऐं। जिससे हम और हमारी आने वाली पीढ़ी सदा खुशहाल रहे।
मेरे प्यारे भाईयों और बहनों मैंने प्रकृति पर कुछ कविताएं लिखी है आप लोग अवश्य पढ़े। अपने सुझाव दें ताकि मेरा भी उत्साह बना रहे।
आओ मिलकर सभी प्रकृति की रक्षा करें।
1. Pyari dhra - प्यारी धरा
वो इतनी खूबसूरत हैं
जुबां से बयां नही कर सकती।
रहती हूं सदा उसके आगोश में,
फिर भी उसे समझ नहीं सकती।
सबका ध्यान वो रखती है,
हर एक को समान समझती है।
सदा पोषण सबका वो करती,
नही किसी का शोषण करती।
फल फूल, अन्न हमें वो देती,
सदा हमारे लिए जीती।
हमें स्वस्थ जीवन वो देती,
आज हमारी बारी है।
हमें मिलकर कुछ करना है,
ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाकर
प्रकृति को हरा भरा करना है
2. Hindi Poem on nature - हरे भरे वृक्ष
कितने प्यारे हैं ये वृक्ष,
चारों ओर हरियाली देते।
प्रकृति को बचाऐ रखते
हमे सदा वो जीवन देते।
हवा हो या हो पानी,
उन्ही से तो हमें मिलती है।
जीते जी हमें है जरुरत,
मरके भी चाहिए लकड़ी,
वृक्षों को तुम सदा बचाओ।
ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाओ।
जीवित रहना चाहते हो तो,
इनका भी तुम जीवन बचाओ।
3. Hindi poem on river - सरिता
कल कल करती, बहती नदियां।
सबका मन मोह लेती है।
अपने पावन निर्मल जल से,
सबको पावन करती है।
प्यासों की वो प्यास बुझाती,
धरा को तृप्त करती है।
खेतों को सिचित कर,
किसानों को खुश करती है।
चलते चलते लम्बा सफर वो तय करती है,
कभी नही है वो थकती है
अपना ही अस्तित्व मिटाकर,
समुद्र में जा मिलती है।
4. Hindi poem on earth - धरती माँ
कितनी प्यारी है ये धरती,
कितनी सुन्दर है ये धरती।
हरियाली से मन खुश करती,
फूलों से खुश्बू देती।
फलों की कोई कमी नहीं है,
भर पेट अन्न यह देती।
सबका है ये पालन करती,
खुशियों में कोई कसर न छोड़ती।
मेरी प्यारी माता धरती,
सबको अपनी गोद में रखती।
5. हरियाली संरक्षण
इतना क्यों स्वार्थी बन रहा इंसान
अपने स्वार्थ की खातिर प्रकृति का कर रहा अपमान
रोज रोज वह वृक्ष काटता
उनका दर्द न वो समझता
दर्द तो उन्हें भी होता है
रोना उन्हें भी आता है
पर वे सिर्फ मौन ही रहते हैं
क्योंकि दिल दुःखाना उन्हें नही आता है
आओ मिलकर प्रण करें
उनके दर्द को हम समझें
वृक्ष कभी नहीं हम काटेंगे
सदा उनकी रक्षा करेंगे।
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